Bihar Kokila Sharda Sinha Biography— दुनिया भर में छठ कोकिला के नाम से मशहूर, शारदा सिन्हा ने अपनी मधुर आवाज से छठ पूजा के गीतों को हर किसी की जुबान पर चढ़ा दिया। उनकी आवाज में वो जादू था जो सुनने वालों के दिलों को छू जाता था। उन्होंने अपने संगीत करियर में अनेकों हिट गाने दिए और पद्म श्री जैसे उच्चतम सम्मान से भी नवाजी गईं।
उनका जीवन लोक संगीत को समर्पित था और उन्होंने अपने गायन से अनेकों लोगों को प्रेरित किया। दुखद रूप से, छठ महापर्व के दिन, 5 अक्टूबर 2024 को, दिल्ली के एम्स में उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली।
उनकी कहानी हमें बताती है कि कैसे एक साधारण बिहारी लड़की ने छठ कोकिला के रूप में इतिहास रच दिया और हिंदी सिनेमा से लेकर राजनीति तक, हर ऑफर को अपने संगीत के प्रति समर्पण के चलते ठुकराया। आइए, इस महान गायिका की पूरी यात्रा को जानते हैं। जानकारी पसंद आये तो अपने दोस्तों के साथ जरुर शेयर करियेगा..
कहाँ हुआ था छठ कोकिला का जन्म
शारदा सिन्हा का जन्म बिहार के सुपौल जिले के हुलास गाँव में हुआ था और उनका ससुराल बेगुसराय में है। शारदा सिन्हा न केवल एक प्रतिष्ठित गायिका हैं, बल्कि उन्होंने शिक्षा क्षेत्र में भी अपना नाम रोशन किया है। उन्होंने बीएड की पढ़ाई की और फिर म्यूजिक में पीएचडी पूरी करने के बाद समस्तीपुर के एक कॉलेज में प्रोफेसर के रूप में अपनी सेवाएं दीं।
संगीत में उनकी गहरी दिलचस्पी ने उन्हें इस क्षेत्र में करियर बनाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने अपनी नौकरी को जारी रखते हुए संगीत के क्षेत्र में भी ख्याति अर्जित की और अंततः कॉलेज से रिटायर भी हुईं।
Bihar Kokila Sharda Sinha Biography Overview
Attributes | Details |
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असली नाम | शारदा सिन्हा |
उपनाम | बिहार कोकिला/छठ कोकिला/बिहार स्वर कोकिला |
पेशा | लोक गायिका |
जन्म तिथि और आयु | 1 अक्टूबर 1952 (आयु 72 वर्ष) |
मृत्यु तिथि | 05 नवम्बर 2024 |
जन्म स्थान | हुलास, राघोपुर, सुपौल जिला, मिथिला क्षेत्र, बिहार |
धर्म | हिन्दू |
जाति | कायस्थ |
राष्ट्रीयता | भारतीय |
शैक्षिक योग्यता | स्नातक |
पैतृक निवास | हुलास, राघोपुर, सुपौल जिला, मिथिला क्षेत्र, बिहार |
शौक | गाना, नृत्य, और गीत लेखन |
स्कूल | बांकीपुर गर्ल्स हाई स्कूल, बिहार |
कॉलेज/विश्वविद्यालय | मगध महिला कॉलेज |
ऊँचाई | 5 फीट 1 इंच |
वजन | 70 किलोग्राम |
फिगर माप | 36-27-36 |
आँखों का रंग | काला |
बालों का रंग | काला |
पिता का नाम | सुखदेव ठाकुर (शिक्षा विभाग में वरिष्ठ अधिकारी) |
माता का नाम | ज्ञात नहीं |
भाई-बहन | ज्ञात नहीं |
पति का नाम | डॉ. ब्रज किशोर सिन्हा |
पुत्र का नाम | अंशुमान सिन्हा |
कई मन्नत मांगने के बाद हुआ छठ कोकिला का जन्म
शारदा सिन्हा के जीवन में उनके परिवार ने एक विशेष भूमिका निभाई है। उनका जन्म ही एक चमत्कार समान था क्योंकि उनके परिवार में कई दशकों से किसी बेटी का जन्म नहीं हुआ था। शारदा का जन्म मन्नतों के बाद हुआ था, और उनके पिता ने पहली बार उनके हुनर की पहचान की।
उनके पिता ने शारदा को संगीत सिखाने का निर्णय लिया, जिससे उनके संगीत की यात्रा शुरू हुई। शादी के बाद भी यह सिलसिला जारी रहा। शारदा को उनके पति का पूरा सपोर्ट मिला, और ससुर ने भी उनके संगीत करियर में खूब साथ दिया। हालांकि, शुरुआत में उनकी सास उनके गाने और बजाने से नाखुश थीं, मगर समय के साथ सब कुछ ठीक हो गया।
इस तरह, शारदा सिन्हा के संगीत करियर में उनके परिवार का योगदान उल्लेखनीय रहा है, जिसने उन्हें बिहार की कोकिला बनने में मदद की।
शारदा सिन्हा के सास से मिला विशेष सिख
शारदा सिन्हा, जो अपने आठ भाइयों की इकलौती बहन थीं, जब शादी करके ससुराल पहुंचीं, तो उनकी सास ने उन्हें छठ पूजा की हर एक रीति-रिवाज सिखाया। इस नई सीख के साथ शारदा ने छठ पूजा की बारीकियों को समझा और धीरे-धीरे इन रीतियों को अपनाना शुरू किया। संगीत में उनकी दक्षता भी बढ़ती गई, जिससे उनके गाने और भी भावपूर्ण होते गए।
जब एक बार शारदा की सास ने उनके गाने को लेकर नाराजगी जताई, तो उनके पति ने न केवल उनका सपोर्ट किया बल्कि पूरे परिवार को भी शारदा की कला के प्रति समर्थन के लिए मनाया। इस प्रकार, शारदा का संगीत करियर न केवल उनकी अपनी मेहनत का परिणाम था बल्कि उनके पति और परिवार के अटूट समर्थन का भी परिणाम था।
सास को पसंद नही था बहु का ऐसे बाहर गाना-बजाना
शारदा सिन्हा की सास को घर में भजन गाना तो मंजूर था, लेकिन उनका मानना था कि बाहर परफॉर्म करना ठीक नहीं है, क्योंकि पहले कभी भी ससुराल में किसी बहू ने ऐसा नहीं किया था। इस परंपरा के विपरीत, शारदा के पति और ससुर ने उनका साथ दिया। ससुर को शारदा की मधुर आवाज में भजन सुनना बेहद पसंद था, जिससे प्रेरित होकर उन्होंने बहू को बाहर गाने की इजाजत दे दी।
इसके बाद शारदा ने भोजपुरी, मैथिली, मगही, और हिंदी में गीत गाना शुरू किया। यह पहला मौका था जब विवाह और त्योहारों के गीतों ने मार्केट में खूब धूम मचाई। इस तरह, शारदा के संगीत करियर ने एक नई उचाईयों को छूना शुरू किया और वह बिहार की कोकिला के रूप में स्थापित हो गईं।
छठ गीत से बॉलीवुड तक का सफ़र
शारदा सिन्हा, जिन्होंने ‘हो दीनानाथ’, ‘सोना साठ कुनिया हो दीनानथ’, और ‘द्वार के छेकाई नेग पहिले चुकइयौ, यौ दुलरुआ भइया’ जैसे कई सुपरहिट गाने गाए, को उनका पहला बड़ा बॉलीवुड ब्रेक राजश्री प्रोडक्शन ने दिया। तारा चंद्र बड़जात्या ने खुद उन्हें मुलाकात के लिए बुलाया था। उनका पहला गाना ‘कहे तो से सजना’ जो कि ‘मैंने प्यार किया’ फिल्म का हिस्सा था, वह एक बड़ी हिट साबित हुआ।
इसके बाद शारदा ने बॉलीवुड में ‘तार बिजली से’ और ‘कौन सी नगरिया’ जैसे कई और गाने गाए, जिन्होंने उन्हें और भी प्रसिद्धि दिलाई। इस तरह, शारदा सिन्हा की संगीत की यात्रा ने नए आयाम छुए और उन्होंने अपने स्वर से बॉलीवुड को भी सजाया।
संगीत प्रेम के लिए राजनीती को नाकारा
शारदा सिन्हा के संगीत के प्रति योगदान की सराहना करते हुए, उन्हें विभिन्न सम्मानों से नवाजा गया है। 1991 में पद्मश्री, 2000 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 2006 में राष्ट्रीय आहिल्या देवी अवार्ड, 2015 में बिहार सरकार पुरस्कार, और 2018 में पद्मभूषण से सम्मानित किया गया।
अपने लंबे करियर में, उन्हें कई बार राजनीतिक दलों से लुभावने ऑफर मिले, लेकिन शारदा ने हमेशा संगीत के प्रति अपनी वचनबद्धता को प्राथमिकता दी। उन्होंने राजनीति में आने के सभी प्रस्तावों को ठुकराया, अपने संगीत करियर को नहीं छोड़ा, और इसी कारण वे विशेष रूप से प्रशंसित हुईं। इन्हीं उपलब्धियों के कारण उन्हें संगीत जगत में उच्च सम्मान प्राप्त हुआ है।
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शारदा सिन्हा का क्या है नेटवर्थ
शारदा सिन्हा की नेटवर्थ की बात की जाए तो वह रिपोर्ट्स के मुताबिक लगभग 16 से 42 करोड़ रुपये के बीच है। उनकी आर्थिक सफलता उनके लंबे संगीत करियर और प्रसिद्धि का प्रमाण है, जिसने उन्हें न केवल संगीत की दुनिया में बल्कि वित्तीय रूप से भी मजबूत बनाया है।
छठ पर्व के पहले दिन शारदा सिन्हा ने ली अंतिम सांस
छठ पूजा के पहले दिन, लोक संगीत की दुनिया में एक युग का अंत हो गया। शारदा सिन्हा, जिन्होंने बिहार की स्वर कोकिला के रूप में ख्याति प्राप्त की थी, का निधन हो गया। 5 नवंबर 2024 को, दिल्ली के प्रतिष्ठित AIIMS Hospital में उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली। उनके निधन से उनके अनगिनत प्रशंसकों और संगीत समुदाय में शोक की लहर दौड़ गई है।
शारदा सिन्हा की आवाज ने न केवल त्योहारों को संगीतमय बनाया बल्कि उनके गानों ने कई पीढ़ियों के दिलों को छुआ। उनकी विरासत उनके गानों के माध्यम से जीवित रहेगी और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देती रहेगी।
शारदा सिन्हा का सोशल मीडिया पहचान
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सारांश
आज के लेख में हमने बिहार कोकिला शारदा सिन्हा के संगीतमय जीवन की यात्रा को जाना। उनकी गायकी ने न केवल छठ पर्व को विशेष बनाया बल्कि संगीत की दुनिया में भी उन्हें एक महान स्थान दिलाया। उन्होंने अपनी कला के माध्यम से अनेकों लोगों को प्रेरित किया और संगीत को अपनी अनमोल धरोहर माना। उनकी विरासत उनके गीतों के रूप में हमेशा हमारे बीच रहेगी।
Bihar Kokila Sharda Sinha Biography FAQs
शारदा सिन्हा का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
शारदा सिन्हा का जन्म 1 अक्टूबर 1952 को बिहार के सुपौल जिले के हुलास गाँव में हुआ था।
शारदा सिन्हा को किन पुरस्कारों से सम्मानित किया गया था?
उन्हें पद्म श्री (1991), संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (2000), राष्ट्रीय आहिल्या देवी अवार्ड (2006), बिहार सरकार पुरस्कार (2015), और पद्म भूषण (2018) से सम्मानित किया गया था।
शारदा सिन्हा का निधन कब हुआ?
शारदा सिन्हा का निधन 5 नवंबर 2024 को दिल्ली के AIIMS अस्पताल में हुआ।
शारदा सिन्हा की शैक्षिक योग्यता क्या थी?
उन्होंने बीएड की पढ़ाई की और संगीत में पीएचडी पूरी की थी।
शारदा सिन्हा ने अपने करियर में कौन-कौन से मुख्य गाने गाए?
उन्होंने ‘हो दीनानाथ’, ‘सोना साठ कुनिया हो दीनानथ’, और ‘द्वार के छेकाई नेग पहिले चुकइयौ, यौ दुलरुआ भइया’ जैसे सुपरहिट गाने गाए थे।